देखें तुझे न आवेंगे हम कहना नहीं कर दिखावेंगे हम ये जौर कोई उठावे कब तक उठ दर ही से तेरे जावेंगे हम घर से मुझे मत निकाल सुन रख जावेंगे तो फिर न आवेंगे हम तू क़त-ए-नज़र तो हम से कर देख नज़रों से तुझे गिरावेंगे हम दो दिन कभू तिरे घर न आवें घर अपने तुझे बुलावेंगे हम घर उस का तो ढूँड कर के पाया या-रब उसे घर भी पावेंगे हम अग़माज़ करे है सब समझ कर क्या हाल उसे सुनावेंगे हम बोसे तो दिए हैं तीं तू हँस हँस गाली तिरी क्यूँ न खावेंगे हम इतनी भी पका न मेरी छाती ऐ ग़ैर तुझे रिझावेंगे हम दिल वो तुझे पूछे या न पूछे पर याद तिरी दिलावेंगे हम ताब उस की जफ़ाओं की किसी तरह 'हसरत' अब तो न लावेंगे हम