दामन से अपने झाड़ के सहरा-ए-ग़म की धूल आओ चलो न हम भी चुनें सरख़ुशी के फूल आख़िर को मिल सकी न बशर को रह-ए-नजात यूँ तो हर एक दौर में आते रहे रसूल दामन बचा के आइयो मेरे मज़ार तक ऐ जान-ए-नौ-बहार उगे हैं इधर बबूल देखा कभी जो दहर को शाइ'र की आँख से ख़ल्लाक़-ए-काएनात भी सदियों रहा मलूल आएगा कोई जाम मय-ए-सरख़ुशी लिए ऐ दिल कुछ और देर हिंडोले में ग़म के झूल