दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो दीन की राह में हंगामा-ए-दुनिया रख दो ज़ुल्म के सामने इख़्लास का पर्दा रख दो नोक-ए-हर-ख़ार पे बर्ग-ए-गुल-ए-रा'ना रख दो अपनी तारीख़ के औराक़ उलटना हैं अगर गुलशन-ए-ऐश पे तपता हुआ सहरा रख दो जिस से वाबस्ता रहे डूबने वाले की उमीद एक तिनका ही सही तुम लब-ए-दरिया रख दो तुम जो चाहो कि मिरे लब भी न खुलने पाएँ मेरे आगे मिरी तक़दीर का चेहरा रख दो रोज़-ए-रौशन की तरह होंगी मुनव्वर रातें चंद शो'ले जो सर-ए-बज़्म-ए-तमन्ना रख दो एक आवाज़ सी आती है हरम से शायद मय-कदे वालो ज़रा साग़र-ओ-मीना रख दो