दम-ब-दम तग़य्युर के रंग हैं ज़माने में कुछ कमी नहीं आती दर्द के ख़ज़ाने में ग़ैर की शिकायत क्या शौक़-ए-लज़्ज़त-ए-ग़म से मैं भी हो गया शामिल अपना दिल दुखाने में मेरे चार जानिब थे ख़ार-ज़ार नफ़रत के उम्र कट गई मेरी रास्ता बनाने में वक़्त ने उन आँखों के ख़्वाब ही बदल डाले देर हो गई तुझ को मेरे पास आने में चीख़ते थे हम-साए इक अजीब लज़्ज़त थी धूप में खड़े हो कर आइना दिखाने में ताएरों को ऐसी भी क्या थी उज्लत-ए-परवाज़ भूल कर चले आए ख़्वाब आशियाने में थी हवा भी शोरीदा हाथ भी थे लर्ज़ीदा उँगलियाँ जला डालीं इक दिया जलाने में दाम और क़फ़स ठहरे क़िस्सा-हा-ए-पारीना क़ैद कर दिया उस ने मुझ को आब-ओ-दाने में बाम-ओ-दर 'फ़रासत' अब क्या हमें ख़ुशी देंगे ज़िंदगी बसर कर दी ग़म के शामियाने में