दर-ए-इम्काँ खुला रक्खा हुआ है हथेली पर दिया रक्खा हुआ है नहीं रक्खा किसी ने दिल हमारा तो सीने से लगा रक्खा हुआ है कोई दुनिया यहाँ ला कर न रक्खे जहाँ मैं ने ख़ुदा रक्खा हुआ है ज़रा छू कर मुझे महसूस कर लो मिरी बातों में क्या रक्खा हुआ है यहाँ इक आइना रक्खा था पहले जहाँ ख़ौफ़-ए-ख़ुदा रक्खा हुआ है