डर के वो बात से अपनी जो मुकर जाएगा एक ख़ंजर मिरे सीने में उतर जाएगा इक ज़रा रात कटे सुब्ह का सूरज निकले धूप के रंग में हर फूल निखर जाएगा जिस्म जल जाएगा हड्डी भी चटख़ जाएगी वक़्त के साथ ही सब रंग उतर जाएगा उन की आँखों में अभी तेशा-ए-सूरज भी नहीं अब्र उट्ठेगा तो जिस्मों पे बिखर जाएगा फिरते देखेगा मुझे शहर में आवारा अगर ले के मायूसी का एहसास वो घर जाएगा