दिल में तुम्हारी याद की आहट उतर गई तन्हाई काँपती हुई मुझ में बिखर गई हम अपने घर का हाल बताएँ तो किस तरह दीवार-ओ-दर की आब तो सारी उतर गई ज़ुल्मत की मेरे चार-सू दीवार थी खड़ी सूरज की धूप आई इधर और उधर गई बिखरी थी हर तरफ़ मिरे महताब की किरन तन्हा था इस लिए मिरी वहशत भी डर गई हर सम्त इक सुकूत का दरिया था मौजज़न साहिल पे आ के मौज भी अंदर उतर गई