दर रहा सब पे जो सुख़नवर है शेर तेग़-ए-ज़बाँ का जौहर है बात अपनी ये सुन के कान में डाल आबरू मिस्ल-ए-आब-ए-गौहर है इश्क़ बिन क्या किसी का दिल हो गुज़ार मोम बे-आग देखे पत्थर है दिल का देना सरासरी मत जान जान पर खेलना सरासर है क्या मुख़ालिफ़ है इस चमन की हवा ख़ार देता है जो गुल-ए-तर है नोक रख लो बरहना-पाई की आबाद ख़ार-ए-दश्त नश्तर है अब तो जाते हैं उस गुल में 'नसीम' हो रहेगा जो कुछ मुक़द्दर है