दर्द बन जाए जो दरमाँ तो ग़ज़ल होती है

दर्द बन जाए जो दरमाँ तो ग़ज़ल होती है
चारागर भी लगे हैराँ तो ग़ज़ल होती है

कोई बिस्मिल जो हो शादाँ तो ग़ज़ल होती है
कोई क़ातिल हो पशेमाँ तो ग़ज़ल होती है

शब को आने का यक़ीं पूरा दिला कर शब में
तोड़ डाले कोई पैमाँ तो ग़ज़ल होती है

यास के घोर अंधेरे में अचानक कोई
शम्अ' हो जाए फ़रोज़ाँ तो ग़ज़ल होती है

टीस उठती है ग़ज़ल बन के मिरे सीने से
ज़ख़्म करता है जो एहसाँ तो ग़ज़ल होती है

ज़ुल्मत-ए-हिज्र में रह रह के कसक उठने से
हो कठिन रात भी आसाँ तो ग़ज़ल होती है

एक चिंगारी जो मस्तूर है मेरे दिल में
रात को कर दे दरख़्शाँ तो ग़ज़ल होती है

फूल खिलते हैं तो होती है चमन में ख़ुशबू
दिल में होता है चराग़ाँ तो ग़ज़ल होती है

आलम-ए-शौक़-ए-मुलाक़ात में परवाने से
शम्अ' होती है गुरेज़ाँ तो ग़ज़ल होती है

मुझ से सरगोशियाँ करती है ख़मोशी शब की
और फिर उठता है तूफ़ाँ तो ग़ज़ल होती है

आरज़ू पाए जो तकमील तो होती है फ़ना
घट के रह जाए जो अरमाँ तो ग़ज़ल होती है

बे-कराँ जौर-ओ-सितम ही नहीं लाते उस को
हो करम भी जो फ़रावाँ तो ग़ज़ल होती है


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