दर्द बेताब है अल्फ़ाज़ में ढलने के लिए रास्ता चाहिए सब को ही निकलने के लिए ख़त्म हो जाता है सब कुछ कभी इक लम्हे में और इक लम्हा ही काफ़ी है सँभलने के लिए ऐसी बारिश की ज़मीं ग़र्क़ हुई जाती है अब्र कुछ वक़्त तो दे देता सँभलने के लिए मैं दिया हूँ मेरी फ़ितरत है उजाला करना वो समझते हैं कि मजबूर हूँ जलने के लिए रात के साथ जला करती हूँ लम्हा लम्हा चाँद का नूर 'सबा' चेहरे पे मलने के लिए