शुऊर-ए-ज़ीस्त सही ए'तिबार करना भी अजब तमाशा है लैल-ओ-नहार करना भी हदीस-ए-ग़म की तवालत गिराँ सही लेकिन किसी के बस में नहीं इख़्तिसार करना भी बना के काग़ज़ी गुल लोग ये समझते हैं कि इक हुनर है ख़िज़ाँ को बहार करना भी अब इस नज़र से तिरी राह देखता हूँ मैं तिरा करम है तिरा इंतिज़ार करना भी गुज़ारने को तो हम ने बरस गुज़ार दिए बड़ा अज़ाब है घड़ियाँ शुमार करना भी ख़ुलूस-ओ-मेहर की कोहना रिवायतों पे न जा क़दीम रस्म है धोके से वार करना भी अब उस के वादा-ए-फ़र्दा का ज़िक्र क्या करना मुझे पसंद नहीं इंहिसार करना भी हमें ने शौक़-ए-शहादत की इब्तिदा की थी हमीं पे ख़त्म हुआ जाँ निसार करना भी जो 'रश्क' करना है तुम को तो 'रश्क' मुझ से करो कि मेरा काम है लोगों से प्यार करना भी