दर्द भी गिनते रहो और ख़्वाब भी गिनते रहो कितना अच्छा काम है लेकिन अकेले मत करो मैं ने उस की रौशनी में जिस क़दर नज़्में कहीं इन को दीवारों पे लिखना है मिरा तुम साथ दो उम्र के ये साल भी आख़िर गुज़र ही जाएँगे चाँद वा'दे की तरफ़ तकते रहो और ख़ुश रहो रिज़्क़ की मछली की ख़ातिर क़त्ल कर देते हैं लोग हो सके तो अपना सब कुछ दूसरों में बाँट दो अब थे इस के पास 'बेदी' पेश उस ने कर दिए आरज़ू अंजाम तक पहुँची मियाँ जीते रहो