दर्द दिल का अयाँ नहीं होता हम से ग़म का बयाँ नहीं होता कैसे समझाएँ अहल-ए-महफ़िल को हर जगह इम्तिहाँ नहीं होता गुज़री बातों को याद करने से वो फ़साना बयाँ नहीं होता ग़म-ज़दों को तसल्लियाँ दे कर कोई जानान-ए-जाँ नहीं होता कहने वाले तो बात कह के गए दिल से आँसू रवाँ नहीं होता बेबसी राह की क़दम रोके रहबरी का निशाँ नहीं होता दुख वहाँ से भी हम को मिलते हैं जिस जगह से गुमाँ नहीं होता उस से क्या ग़म बयाँ करें अपना सुन के जो मेहरबाँ नहीं होता क्यों सताते हो ग़म-ज़दों को 'अदा' दिल तुम्हारा तपाँ नहीं होता