दर्द दिल में हों सुन ऐ यार-ए-सितम-गार कि तू तू हुआ चोर तो फिर मैं हूँ गुनहगार कि तू तू वफ़ादार है ऐ यार-ए-जना-कार कि तू मैं वफ़ादार हूँ ऐ यार-ए-हिबा-कार कि तू जाम-ए-मय किस के यहाँ हाथ में रहता है मुदाम मैं भला दुख़्तर-ए-रज़ से हूँ गिरफ़्तार कि तू तुम हो बद-अहद न मैं मैं हूँ वफ़ादार कि तुम मैं ये कहता हूँ कि तुम तुम कहो हर बार कि तू मुझ को यूँ ख़ूँ में डुबो कर ये कहे है क़ातिल मैं बना आज भला ग़ैरत-ए-गुलज़ार कि तू ज़ख़्म-ए-दिल पर मेरे कल नून छिड़क कर बोले आज मैं हूँ नमकीन और मज़ेदार कि तू उस से पूछूँ शब-ए-वस्ल में मैं छेड़ के ये मुँह से अपने भी तो कह मैं हूँ मिलनसार कि तू महर-ए-ताबाँ से ये हर साल है मेरा दाग़-ए-जिगर मैं हूँ ताबिंदा तिरा महर-ए-पुर-अनवार कि तू तुझ को कहता हूँ कि ऐ बर्क़ चमक कर फिर आ देखूँ अफ़ज़ल है मेरी आह-ए-शरर-बार कि तू और यारी का मज़ा लूट दिला एक न बन तीस दिन आठ पहर यार है नाचार कि तू कोह-ए-ग़म दिल पे मेरे दोश पे तेशा तेरे कोहकन तू ही बता मैं हूँ गिराँ-बार कि तू शब को आ कर वो गले से ये चिमक कर बोले तुझ से पूछूँ हूँ कि अब मैं हूँ वफ़ादार कि तू उस से पूछे है जो 'एहसान' वफ़ा-पेशा कभी बेवफ़ा कौन है कहता है वो अय्यार कि तू