गर्दिश-ए-वक़्त ज़माने की तरह है ज़िंदगी इश्क़ लड़ाने की तरह है जिस का चर्चा हो बहुत ऐसी ख़मोशी रूह में शोर मचाने की तरह है उन की आँखों में ठहरने की तमन्ना बिस्तर-ए-ख़्वाब सजाने की तरह है अपनी क़िस्मत के सितारे का तआ'क़ुब किसी रूठे को मनाने की तरह है उस की आमद ख़ुशी भी हो 'सुख़न' क्या जिस का आना भी न आने की तरह है