दर्द-ए-दिल अपना सुनाना चाहिए हँसने वालों को रुलाना चाहिए कू-ए-क़ातिल में जो होनी हो सो हो बे-तकल्लुफ़ आना जाना चाहिए तेग़-ए-अबरू के शहीदों के लिए आख़िरी ख़िलअत शहाना चाहिए गर क़दम रखना है कू-ए-यार में ज़िंदगी से हाथ उठाना चाहिए क्या कहूँ बेदर्दी-ए-सय्याद-ए-इश्क़ उस के फंदे में न आना चाहिए हम जो बैठें तो कहाँ जुज़ कू-ए-दोस्त कोई अपना भी ठिकाना चाहिए रंज दे कर ख़ुश नहीं रहता कोई क्यों किसी का दिल दुखाना चाहिए क़िस्सा-ए-फ़रहाद-ओ-मजनूँ हो जहाँ कुछ तो अपना भी फ़साना चाहिए देखना है गर बहार-ए-बाग़-ए-इश्क़ ख़ून के आँसू बहाना चाहिए यार के दर की है छानी जिस ने ख़ाक उस को सर पर ख़ाक उड़ाना चाहिए जाग के क्यों सो गए फिर ऐ 'हक़ीर' क्या तुम्हें हर दम जगाना चाहिए