दुश्मन को ले के साथ सितमगर इधर बढ़ा कुच दर्द-ए-सर घटा था कि दर्द-ए-जिगर बढ़ा ख़ाली न आए यार की महफ़िल से हम कभी रश्क-ए-अदू से और भी ज़ख़्म-ए-जिगर बढ़ा तन्हाई पर मिरी न ज़रा भी किया ख़याल दिल पहले नज़्र ले लिया तब नामा-बर बढ़ा महरूम रह न जाएँ कि महफ़िल अख़ीर है साक़ी भला हो अब भी कोई जाम इधर बढ़ा मेरे सबब से क़ातिल-ए-आलम मिला ख़िताब जब मैं मिटा तो आप का ये कर्र-ओ-फ़र बढ़ा जब मर गए तो क़ब्र पे वो फ़ातिहा को आए कब मेरे नाला-हा-ए-दरूँ का असर बढ़ा अरमान-ए-वस्ल करते हैं देखूँ कहाँ क़ियाम दिल की तरफ़ भी यार का तीर-ए-नज़र बढ़ा रंज-ओ-मलाल-ए-हिज्र से घबरा न ऐ 'हक़ीर' हाँ जिस क़दर बढ़े अभी ज़ाद-ए-सफ़र बढ़ा