दर्द-ए-दिल ही में निहाँ है दर्द-ए-दिल का राज़ भी साज़ ही में मुस्ततर है साज़ की आवाज़ भी हो गईं रौशन मिरी आँखें ज़हे-ए-नूर-ए-जमाल दीदनी है वो और उस के हुस्न का ए'जाज़ भी अल्लह अल्लह वहदत-ए-जज़्बात-ओ-कैफ़िय्यात-ए-इश्क़ एक सूरत में हुआ अंजाम भी आग़ाज़ भी अरसा-ए-हस्ती मुझे क्यों अरसा-ए-महशर न हो फ़ित्ना-पर्वर्दा भी और उस का ख़िराम-ए-नाज़ भी ख़ुद निगाह-ए-शौक़ कर देती है इफ़्शा राज़-ए-दिल इश्क़ है कम्बख़्त अपना आप ही ग़म्माज़ भी सुनने वाले का ज़रा हुस्न-ए-समाअत देखिए आ गई पर्दों के बाहर साज़ की आवाज़ भी कर चुके गोर-ए-ग़रीबाँ की ज़ियारत कर चुके देख लीजे अब ज़रा क़ब्र-ए-शहीद-ए-नाज़ भी रूह निकले तन से नग़्मे कैफ़ के गाती हुई मैं दम-ए-आख़िर अगर सुन लूँ तिरी आवाज़ भी दीदा-ए-बेदार 'कौकब' फ़ैज़याब-ए-नूर है उठ गए या'नी निगाहों से हिजाब-ए-राज़ भी