ऐ ख़ुदा इश्क़ में मेहनत मिरी बर्बाद न हो दिल गिरफ़्तार-ए-वफ़ा है कहीं आज़ाद न हो वादा-ए-वस्ल उन्हें याद दिलाऊँ तो कहें बात तुम ऐसी कहो क्यों जो मुझे याद न हो दिल-ए-आफ़त-ज़दा अब देख चुका ऐश के दिन ये वो वीराना है जो फिर कभी आबाद न हो दर क़फ़स का है खुला कुछ सर-ए-परवाज़ नहीं इस क़दर भी असर-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद न हो जिस को तू लुत्फ़ समझता है सितम निकलेगा ऐ दिल आग़ाज़-ए-मोहब्बत है अभी शाद न हो वस्ल के ज़िक्र से क्या काम समझ जाऊँगा इक इशारा ही सही मुँह से कुछ इरशाद न हो ज़ुल्म-ए-बे-जा से तो ख़ुद बाज़ नहीं आते हैं और मुझ पर है ये ताकीद कि फ़रियाद न हो तेरे क़ामत ने उठाई है क़यामत कैसी मुझ को डर है ये कोई मिस्रा-ए-उस्ताद न हो आज क्यों नग़्मा-ए-लय में है फ़ुग़ाँ का अंदाज़ तेरी महफ़िल में कहीं 'कौकब'-ए-नाशाद न हो