दर्द-ए-दिल करें जा कर किस से हम बयाँ अपना जब नज़र नहीं आता कोई राज़-दाँ अपना क्या बताऊँ मैं क्या हूँ और कहाँ मैं रहता हूँ बे-ख़ुदी शिआ'र अपना ला-मकाँ मकाँ अपना दर्द दिल में उठता है अश्क भी है आँखों में किस से मैं कहूँ या-रब राज़ है निहाँ अपना कसरत-ए-मसाइब को झेल शौक़ से ऐ दिल कार-गाह-ए-हस्ती में है ये इम्तिहाँ अपना लज़्ज़त-ए-तरब मुझ को हो सकी न कुछ हासिल फ़स्ल-ए-गुल ही में गुलशन हो गया ख़िज़ाँ अपना किस को हम सुनाएँ अब ऐ 'वली' ग़ज़ल आख़िर जब नज़र नहीं आता कोई क़द्र-दाँ अपना