दिलों में हुस्न-ए-यक़ीं तो कुजा गुमाँ भी नहीं तुम आग ढूँढ रहे हो यहाँ धुआँ भी नहीं जला सकेगी उसे बर्क़-ए-ना-गहाँ भी नहीं ख़ुदी क़वी हो तो ख़तरे में आशियाँ भी नहीं खड़े हैं दश्त-ए-तहय्युर में हम किधर जाएँ जरस का शोर तो क्या गर्द-ए-कारवाँ भी नहीं फ़लक पे कौंद रही है न जाने क्यों बिजली चमन में अब तो मिरी ख़ाक-ए-आशियाँ भी नहीं मिला है ख़िलअत-ए-उर्यानी-ए-जुनूँ सद-शुक्र बला से तन पे गरेबाँ की धज्जियाँ भी नहीं क़फ़स से छूट के ऐ बेकसी कहाँ जाऊँ शिकस्ता बाल भी हूँ याद-ए-आशियाँ भी नहीं हज़ारों हैं तिरी महफ़िल में ज़मज़मा-पर्दाज़ फ़ुग़ाँ कि मेरे लिए रुख़्सत-ए-फ़ुग़ाँ भी नहीं पड़ी है जल्वा-गह-ए-दैर-ओ-का'बा अब वीराँ जमाल-ए-यार यहाँ भी नहीं वहाँ भी नहीं जबीन-ए-शौक़ है दुनिया-ए-इश्क में रुस्वा नसीब उस को तिरी ख़ाक-ए-आस्ताँ भी नहीं उड़ा के ले चल उसी को चमन में ओ पर-ओ-बाल गिराँ क़फ़स भी नहीं दूर आशियाँ भी नहीं क़िमार-ए-इश्क़ में हासिल है लज़्ज़त-ए-जावेद नहीं जो सूद कुछ इस में न हो ज़ियाँ भी नहीं ग़म-ए-जहाँ ने सताया है इस क़दर मुझ को कि दिल में याद-ए-बुताँ क्या ग़म-ए-बुताँ भी नहीं उधर है दरपय-ए-तख़रीब-ए-आशियाँ सय्याद इधर तसव्वुर-ए-ता'मीर-ए-आशियाँ भी नहीं अब ऐसी नाव पे मौजों का हम-सफ़र हूँ मैं कि नाख़ुदा भी नहीं और बादबाँ भी नहीं वजूद-ए-बर्क़ है तामीर-ए-आशियाँ से 'वली' अगर बहार नहीं मौसम-ए-ख़िज़ाँ भी नहीं