दर्द-ए-दिल उस से बयाँ करता है नादाँ कोई सुन के जो कह दे कि उस का नहीं दरमाँ कोई दौलत-ए-होश-ओ-ख़िरद भी वो लुटा देते हैं तेरे दीवाने नहीं रखते हैं सामाँ कोई नज़्अ' में पेश-ए-नज़र आइना आ'माल का है पूछते क्या हो कि है किस लिए हैराँ कोई भूल कर भी नहीं आता है रिहाई का ख़याल या-रब इतना भी न हो ख़ूगर-ए-ज़िंदाँ कोई दफ़्न हैं हसरत-ओ-अरमाँ की हज़ारों लाशें दिल से पहलू में कि है गोर-ए-ग़रीबाँ कोई हसरतें उस दिल-ए-नाकाम की अल्लह अल्लाह जिस का निकला ही न हो दहर में अरमाँ कोई नज़्अ' में काश किसी ने भी तो पूछा होता मरने वाले तिरे दिल में भी है अरमाँ कोई इस तरह रखता हूँ दिल में रुख़-ए-पुर-नूर की याद जैसे सीने से लगाए हुए क़ुरआँ कोई अपने बेगाने का झगड़ा ही मिटा दो 'वासिफ़' आओ आबाद करो चल के बयाबाँ कोई