दर्द-ए-फ़िराक़ दर्द-ए-तमन्ना लिए हुए दुनिया से जा रहा हूँ मैं दुनिया लिए हुए हूँ दिल में एक तेरी तमन्ना लिए हुए या हूँ तमाम इश्क़ की दुनिया लिए हुए अक्सर उठा हूँ दोस्त की महफ़िल से इस तरह आँखों में अश्क अश्कों में दरिया लिए हुए दुनिया में रह के भी है वो दुनिया से बे-नियाज़ जो है तिरे ख़याल की दुनिया लिए हुए शान-ए-ख़ुलूस-ए-सज्दा के क़ुर्बान जाइए उट्ठी जबीं तो नक़्श-ए-कफ़-ए-पा लिए हुए मिलता है क्या जवाब तिरी बारगाह से आया हूँ लब पे हर्फ़-ए-तमन्ना लिए हुए सहरा में कट रही है अगर ज़िंदगी तो क्या आँखों में है बहार का नक़्शा लिए हुए उन का इलाज कौन करे बस तिरे सिवा हैं जितने ज़ख़्म दिल में मसीहा लिए हुए अब जो भी बज़्म-ए-दोस्त में पेश आए ऐ 'कमाल' जाता हूँ दिल में दिल का तक़ाज़ा लिए हुए