चमन में कोई कली जब भी मुस्कुराती है मुझे किसी के तबस्सुम की याद आती है हमारी तीरा-शबी इस सहर से क्या माँगे जो दूसरों से उजालों की भीक पाती है चमन में देख के फूलों की चाक-दामानी बहार अपने लहू में नहाए जाती है गवाह हैं ये शब-ए-ग़म के डूबते तारे किसी की याद में मुश्किल से नींद आती है इसी बहार पर इतरा रहे हैं अहल-ए-चमन नए नए जो गुलिस्ताँ में गुल खिलाती है हम ऐसी नाव के हैं नाख़ुदा मुक़द्दर से भँवर से बच के जो साहिल पे डूब जाती है फ़रेब देने गुलिस्ताँ के ज़िम्मा-दारों को लिबास-ए-वक़्त बदल के बहार आती है सहर को होगी ये महफ़िल न दौर-ए-जाम-ओ-सुबू 'कमाल' होश में आओ कि रात जाती है