दर्द-ए-जिगर किसी को बताया न जाएगा ये दाग़ चारागर को दिखाया न जाएगा एहसान कर के आप तो फ़ारिग़ हुए जनाब ये बार-ए-लुत्फ़ हम से उठाया न जाएगा दिल को तो रोक लेंगे निगाहों का क्या करें हम से तो राज़-ए-'इश्क़ छुपाया न जाएगा रख पाँव राह-ए-शौक़ पे सौ बार सोच कर इस रहगुज़र से लौट के आया न जाएगा तोड़ा जिन्हों ने दिल मिरा अपने ही लोग थे ये हादिसा किसी को बताया न जाएगा यादों को अपनी दिल में मिरे रहने दीजिए घर ये उजड़ गया तो बसाया न जाएगा नुक्ता-रसों की भीड़ है डरता हूँ ऐ 'सदा' महफ़िल में ऐसी शे'र सुनाया न जाएगा