दिल हसरतों से जब मिरा मा'मूर हो गया पिंदार का नशा जो था काफ़ूर हो गया ज़ाहिद जब अपने ज़ोह्द पे मग़रूर हो गया मैं अपनी लग़्ज़िशों का भी मशकूर हो गया आँखें न चीर पाईं हुदूद-ए-नज़र कभी पलकें हुईं जो बंद तो दिल तूर हो गया जीने का क्या जवाज़ पस-ए-तकमिला-ए-ज़ात शायद शहीद इसी लिए मंसूर हो गया फ़िक्र-ए-सुख़न में सर्फ़ की तू ने 'सदा' हयात और बैठे बैठे ही कोई मशहूर हो गया