दर्द इक शम्अ-ए-तफ़क्कुर है अगर समझो तो फ़हम इंसाँ का तबहहुर है अगर समझो तो मीठे बोलों में नहीं महज़ तसल्ली में नहीं जेहद-ए-पैहम का तसव्वुर है अगर समझो तो ये हक़ीक़त के क़लम से लिखा अफ़्साना है ये ही इरफ़ान-ए-तफ़क्कुर है अगर समझो तो ये इबादत है तहज्जुद की ये होगी मक़्बूल जोश-ए-उम्मीद से ये पुर है अगर समझो तो तेशा-ए-कोह-कनी आतिश-ए-नमरूद है ये आज़माइश का तक़र्रुर है अगर समझो तो अक्स इस का नहीं आईना-ए-तक़दीर में हाँ दावत-ए-फ़िक्र-ओ-तदब्बुर है अगर समझो तो