दर्द इक्सीर के सिवा क्या है ज़ख़्म-ए-दिल के बिना मज़ा क्या है मेरी साँसों में बस गई है महक हाए इस कूचे की हवा क्या है वस्ल के चार दिन तो बीत गए सिर्फ़ यादें हैं अब बचा क्या है दिल दिया जिस को वो हुआ ग़ाफ़िल जुर्म-ए-इज़हार की सज़ा क्या है खो गया वो जहाँ के मेले में मेरी दुनिया में अब रहा क्या है बात होती थी कल निगाहों से उन इशारों का अब हुआ क्या है जानते जब थे इश्क़ का अंजाम 'मोना' क़िस्मत से फिर गिला क्या है