दर्द हो दिल में तो दवा कीजे और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे ग़म में कुछ ग़म का मशग़ला कीजे दर्द की दर्द से दवा कीजे आप और अहद-ए-पुर-वफ़ा कीजे तौबा तौबा ख़ुदा ख़ुदा कीजे देखता हूँ जो हश्र के आसार अपने तेवर मुलाहिज़ा कीजे नज़र-ए-इल्तिफ़ात बन गई मौत मिरी क़िस्मत को आप क्या कीजे देखिए मुक़तज़ा-ए-हाल-ए-मरीज़ अब दवा छोड़िए दवा कीजे चार दिन की हयात में 'मंज़र' क्यूँ किसी से भी दिल बुरा कीजे