दर्द जब दास्ताँ बनाऊँगा आप को हम-ज़बाँ बनाऊँगा पहले रक्खूँगा इस ज़मीं पे क़दम फिर मैं इक आसमाँ बनाऊँगा उस ने ख़त में बनाईं हैं आँसू मैं भी अब सिसकियाँ बनाऊँगा अपने कमरे से मशवरा कर के ख़ामुशी की ज़बाँ बनाऊँगा तेरे होंटों से सुर्ख़ियाँ ले कर देखना तितलियाँ बनाऊँगा जिस में लैला ही मजनूँ हो जाए ऐसी मैं दास्ताँ बनाऊँगा