सौदा-ए-इश्क़-ए-ख़ाम तो हर इक बशर में है मजनूँ सा ज़ब्त-ओ-जोश-ओ-जुनूँ किस के सर में है इक मैं ही मदह-गो नहीं सरकार आप का चर्चा तुम्हारे हुस्न का हर एक घर में है अल्लाह रे नूर-ए-मुसहफ़-ए-रुख़्सार की दमक ये ताब ये चमक कहाँ लाल-ओ-गुहर में है घायल किए हज़ार तो लाखों जला दिए क्या बात उन की निगह-ए-जादू-असर में है नाहक़ ही कोसते हो जो रिंदों को शैख़ जी देखा भी रश्क-ए-हूर कोई उम्र भर में है ख़ंजर छुपा लिए हैं जो मिज़्गाँ की आड़ में हम पर अयाँ है सब जो तुम्हारी नज़र में है बिस्मिल हुए रक़ीब तो हम तिलमिला उठे सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है ख़ाना-ख़राब-ए-इश्क़ ने दुनिया से खो दिया इस पर भी आज तक वही ख़फ़क़ान सर में है 'आज़म' बजा है सीम-तनों का ग़ुरूर-ए-हुस्न क़ुदरत है उन की बात में जादू नज़र में है