दर्द जब सब्र के धारों से निकल आए थे फिर मुनाफ़िक़ मिरे यारों से निकल आए थे लाश पानी में पड़ी देख के तन्हा मेरी अश्क दरिया के किनारों से निकल आए थे देख के आँख-मिचोली को चमन में उस दिन दफ़अ'तन फूल बहारों से निकल आए थे मैं ने आवाज़ लगाई थी मोहब्बत ले लो लोग उजलत में क़तारों से निकल आए थे मेरे आक़ा की रिसालत की गवाही के लिए मो'जिज़े चाँद सितारों से निकल आए थे