है गली सुनसान खिड़की बंद रख By Ghazal << भरी आँखों से गर उस को तकू... दर्द जब सब्र के धारों से ... >> है गली सुनसान खिड़की बंद रख मैं यहाँ अंजान खिड़की बंद रख क्या पता कब पार हो जाएँ हदें तेज़ है तूफ़ान खिड़की बंद रख मैं तो बंजारा हूँ मुझ से इस क़दर मत बढ़ा पहचान खिड़की बंद रख अब हमारे गाँव के मासूम भी हो गए शैतान खिड़की बंद रख Share on: