दर्द का कैसा रिश्ता है शहनाई से लाडली बेटी पूछ रही है माई से शादाबी ज़ख़्मों में कैसे आएगी अन-बन ठहरी है मेरी पुर्वाई से आँखों के प्याले में दुनिया रहती है उस को देखूँगा मन की बीनाई से दश्त की जानिब निकला है फिर उस के साथ यूसुफ़ धोका खाएगा फिर भाई से अपने अंदर काफ़ी डूब चुका हूँ मैं निकलूँ कैसे जिस्म की गहरी खाई से सोच समझ कर उस से बातें करता हूँ पर्बत पैदा हो जाता है राई से सुनने वाला कोई नहीं आता 'ख़ुर्शीद' शोर लिपट कर रोता है तन्हाई से