दर्द का कोई हम-नवा भी नहीं ख़्वाब क्या अब तो रत-जगा भी नहीं चाँद तारे हैं दस्तरस में तिरी मेरी क़िस्मत में इक दिया भी नहीं जिस की चाहत में ग़र्क़ हूँ लोगो बे-ख़बर वो ये जानता भी नहीं जान-ए-जाँ देख तेरे जाने से रंग बे-रंग हैं ज़िया भी नहीं मैं वो हिर्मां-नसीब हूँ जिस के हाथ ख़ाली हैं और दुआ भी नहीं