दर्द का दर्द से दरमाँ करते यूँ इलाज-ए-ग़म-ए-जानाँ करते हम अगर फ़िक्र-ए-गुलिस्ताँ करते रोज़ दामन को गरेबाँ करते घर की वीरानी से फ़ुर्सत न मिली वर्ना हम सैर-ए-बयाबाँ करते कितना अर्ज़ां है ग़रीबों का लहू आप तो रोज़ चराग़ाँ करते दिल उमँड आया था बैठे बैठे कैसे अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ करते दिल का ख़ून आँख तक आ ही जाता आप कुछ ज़िक्र-ए-गुलिस्ताँ करते उम्र गुज़री है हमारी 'एहसास' ख़ातिर-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ करते