दर्द के इंक़लाब से हारा एक पत्थर गुलाब से हारा सब सवालों ने ख़ुद-कुशी कर ली जब मैं उस के जवाब से हारा क्या मिरा दर्द बाँच लेता जो आइना इक नक़ाब से हारा उस को भी जीत का गुमान रहे मैं भी कुछ इस हिसाब से हारा आख़िरी साँस ले रही थी रात जब चराग़ आफ़्ताब से हारा