'मीर' की सादगी बयान में रख 'दाग़' की दिल-कशी ज़बान में रख दूसरों को भी रौशनी पहुँचे यूँ दिया घर के दरमियान में रख अम्न और सुल्ह-ओ-आश्ती क्या है ये सवालात इम्तिहान में रख अपने पुरखों के कारनामों के कुछ हवाले भी दास्तान में रख नेकियाँ अब न डाल दरिया में हम फ़क़ीरों की बात ध्यान में रख धूप ही अब तुझे जगाएगी कोई खिड़की खुली मकान में रख