दर्द के खेत में मुस्कान उगाने वाला कितना ख़ुश-ज़र्फ़ है ज़ख़्मों को छुपाने वाला दिल में इख़्लास वफ़ाओं की है गठरी सर पर आदमी है ये किसी और ज़माने वाला याद आता रहा ता-देर सफ़र में मुझ को हाथ रह रह के दरीचे से हिलाने वाला आग कुछ और घरों को भी जला डालेगी सोचता काश मिरे घर को जलाने वाला लोग चेहरों को छुपाते हुए फिरते हैं 'नदीम' शहर में आया है आईना दिखाने वाला