लग गए बरसों जवाबात बताने के लिए इन ख़ुराफ़ात को घर घर से हटाने के लिए किस क़दर ज़हर पिया ज़ब्त किया है मैं ने जो लगी आग है सीने में छुपाने के लिए ऐसे भी लोग बहुत सारे मिलेंगे तुम को हर ग़लत काम किया नाम कमाने के लिए ख़ून-ए-दिल ख़ून-ए-जिगर जान तलक नज़्र किए क्या नहीं दे के गए लोग ज़माने के लिए दाओ पर लोग लगा देते हैं हर शय अपनी अपने दुश्मन को फ़क़त नीचा दिखाने के लिए कौन जाता है किसी तपते हुए सहरा में अपनी तन्हाई का इक जश्न मनाने के लिए कोशिशें जारी हैं इस दौर की हर दिन ऐ 'लतीफ़' जितने जंगल हैं उन्हें शहर बनाने के लिए