दर्द की जो कोई दवा जाने वही कुछ इश्क़ का मज़ा जाने कोई दिल की किसी के क्या जाने ग़ैब की बात को ख़ुदा जाने हम तो दाना उसी को कहते हैं जो हसीनों को बेवफ़ा जाने दिल-ए-गुम-गश्ता का जो पूछा हाल बोले मुँह फेर कर ख़ुदा जाने मय-कदे में पड़े थे कल ज़ाहिद कौन आज उन को पारसा जाने हुस्न-ए-ज़न बस इसी को कहते हैं कि हर इक चीज़ को भला जाने आशिक़ी के लिए है शर्त 'ख़याल' कि जफ़ाओं को भी वफ़ा जाने