दम भर भी जो हो जाए मुलाक़ात बहुत है दो बातें भी वो कर लें तो ये बात बहुत है लुत्फ़ आज-कल आता है सिवा बादा-कशी का मतबू मुझे इस लिए बरसात बहुत है दिन भर तो जुदाई में तड़पते हुए गुज़रा जाते हो कहाँ ठहरो अभी रात बहुत है क्यों बुल-हवसों में वो मुझे गिनते हैं या-रब इश्क़ और हवस में तो मुनाफ़ात बहुत है दो घूँट भी है ग़म के ग़लत करने को काफ़ी थोड़ी सी भी साक़ी की मुदारात बहुत है ऐ दिल उन्हें डर है कहीं बदनाम न हो जाएँ ये चोरी छुपे की भी मुलाक़ात बहुत है नासेह तिरी बक-बक से तो सर फिर गया अपना मोहमल ये बहुत है ये ख़राबात बहुत है रौशन हुए चौदह तबक़ इक जाम से तेरे एहसान तेरा पीर-ए-ख़राबात बहुत है दिल ले के मिरा जी वो बढ़ाते हैं ये कह कर हो दिल से तो थोड़ी सी भी सौग़ात बहुत है मुझ मस्त को क्या सल्तनत-ए-जम की तमन्ना ख़िदमत तिरी ऐ पीर-ए-ख़राबात बहुत है रहता है 'ख़याल' आप का हर-वक़्त सना-ख़्वाँ ईमान की है बात ख़ुश-औक़ात बहुत है