दर्द की जोत मिरे दिल में जगाने वाले रोज़ पैग़ाम नया दे के रुलाने वाले कैसे लिख दूँ मैं तिरे नाम फ़साना कोई बीच मंजधार में कुश्ती को डुबाने वाले न कोई अक्स न ज़ंगार रहा मेरे लिए रूह के शीशे को शफ़्फ़ाफ़ बनाने वाले क्या नहीं लिक्खा निगाहों को रहीन-ए-जल्वा अपनी तहरीर से तक़दीर सजाने वाले मिस्ल-ए-परवाना तड़पने के लिए छोड़ दिया शम-ए-गुमनाम से जज़्बों को जलाने वाले किसी ता'बीर को तकमील तो पा जाने दे ख़्वाब हर रोज़ नया मुझ को दिखाने वाले अज़्म-ए-मोहकम लिए मैं पेश नज़र आई हूँ तीर अल्फ़ाज़ का बे-ख़ौफ़ चलाने वाले वक़्त अब भी है सँभल जाओ ये दुनिया है फ़रेब प्यार के ढोंग में लोगों को फँसाने वाले वक़्त अब दूर नहीं है कि उठे शोर-ए-ग़ज़ब ग़म के सैलाब में दुनिया को बहाने वाले