दर्द को दर्द से निस्बत होगी क्यों सोचें कि मोहब्बत होगी जान किसी को दी थी तुम ने अब जो जिए तो नदामत होगी तुम से मुझे कुछ काम नहीं है तुम को मेरी ज़रूरत होगी आओ ख़ुदा की बस्ती है ये किसी खंडर में इबादत होगी कुटियाओं का लुटेरा होगा जिस की नई इमारत होगी बैठा हूँ फिर दिया जलाए परवानों की ज़ियाफ़त होगी जिस्म किसी का गर्म नहीं है 'राही' तुम को हरारत होगी