इक अंजान राह पर दोनों मिल गए आज बे-ख़तर दोनों फूल है एक एक पत्थर है बन गए कैसे हम-सफ़र दोनों फ़ासले ऐसे कम नहीं होंगे छोड़ दें अपना अपना घर दोनों टक्करें ले रहे हैं दुनिया से दिल में रखते नहीं हैं डर दोनों ताड़ लेते हैं ताड़ने वाले गो मिलाते नहीं नज़र दोनों रात इक दूसरे में डूब गए हो गए ख़ुद से बे-ख़बर दोनों हो के गुमराह आज-कल 'राही' फिर रहे हैं नगर नगर दोनों