दर्द में लब पर आह न लाना सब के बस की बात नहीं हँसते हँसते अश्क छुपाना सब के बस की बात नहीं हम ने इक ज़ालिम को अपना दिल दे कर ये जाना है पत्थर से शीशा टकराना सब के बस की बात नहीं शाम-ए-अलम पलकों पर अपनी रौशन हैं अश्कों के दिए यूँ चाहत का जश्न मनाना सब के बस की बात नहीं दुनिया की परवाह न कर के हम ने प्यार किया उन से दोश-ए-हवा पे दीप जलाना सब के बस की बात नहीं गुलशन से गुल चुन के सजाना अपने घर को आसाँ है सहरा सहरा फूल खिलाना सब के बस की बात नहीं हाए वो लब ख़ामोश किसी के उफ़ वो किसी की नीची नज़र कुछ भी न कह कर सब कह जाना सब के बस की बात नहीं जो भी कहा वो कर के दिखाया हम ने मोहब्बत में ऐ 'मयंक' कहना और फिर कर के दिखाना सब के बस की बात नहीं