दर्द-ओ-ग़म का आप को भी तज्रबा हो जाएगा ज़ीस्त की जब तल्ख़ियों से सामना हो जाएगा छोड़ जा परछाइयाँ बीते हुए लम्हात की कुछ तो जीने का मुझे भी आसरा हो जाएगा छीन ले मुझ से मिरा एहसास भी ऐ ज़िंदगी आख़िरी एहसान मुझ पे ये तिरा हो जाएगा खुल ही जाएगा भरम अहबाब के इख़्लास का गर्दिश-ए-दौराँ में जब तू मुब्तला हो जाएगा तू भी कुछ इल्ज़ाम दे ऐ दोस्त औरों की तरह कुछ नहीं तो दोस्ती का हक़ अदा हो जाएगा तोड़ दी उम्मीद की बैसाखियाँ हालात ने कौन जाने किस घड़ी क्या हादिसा हो जाएगा नाज़ था जिस की वफ़ाओं पर बहुत 'साजिद' हमें क्या ख़बर थी वो भी इक दिन बेवफ़ा हो जाएगा