दर्द समझे न कोई दर्द का दरमाँ समझे लोग वहशत को इलाज-ए-ग़म-ए-दौराँ समझे दिल पे क्या गुज़री अचानक तिरे आ जाने से इस नज़ाकत को भला क्या कोई मेहमाँ समझे अर्श-ओ-कुर्सी से परे रखते हैं जो लांगह-ए-फ़िक्र मंज़र-ए-दहर को हम रौज़न-ए-ज़िंदाँ समझे वो भड़कते हुए शो'ले थे नशेमन के मिरे दूर से आप जिन्हें सर्व-ए-चराग़ाँ समझे यूँ भी हालात से समझौता किया है अक्सर दुश्मन-ए-जाँ को भी हम अपना निगहबाँ समझे