दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई आह मिन्नत-कश-ए-असर न हुई अपनी तक़दीर राह पर न हुई कोई तदबीर कारगर न हुई जुर्म-ए-उल्फ़त से झुक गईं आँखें चार उन से मिरी नज़र न हुई नज़्अ' में वो न आए बालीं पर मौत भी मेरी मो'तबर न हुई देखते हैं सभी नज़र उन की और अपनी नज़र नज़र न हुई यूँ तमन्ना के फूल मुरझाए शाख़-ए-उम्मीद बारवर न हुई उन से मिलने की आरज़ू पूरी हश्र से वो भी पेशतर न हुई हिज्र की शब मरीज़-ए-फ़ुर्क़त ने जान दे दी मगर सहर न हुई ऐसे जीने से मौत बेहतर है ज़िंदगी ज़िंदगी अगर न हुई सैकड़ों इंक़लाब आए मगर दिल की दुनिया इधर-उधर न हुई लाख साइंस ने तरक़्क़ी की दस्तरस मौत पर मगर न हुई क्या करें शरह-ए-हाल-ए-दिल 'शो'ला' ग़म की रूदाद मुख़्तसर न हुई