ग़म से कहाँ ऐ इश्क़ मफ़र है रात कटी तो सुब्ह का डर है तर्क-ए-वफ़ा को मुद्दत गुज़री आज भी लेकिन दिल पे असर है आइने में जो देख रहे हैं ये भी हमारा हुस्न-ए-नज़र है ग़म को ख़ुशी की सूरत बख़्शी इस का भी सेहरा आप के सर है लाख हैं उन के जल्वे जल्वे मेरी नज़र फिर मेरी नज़र है तुम ही समझ लो तुम हो मसीहा मैं क्या जानूँ दर्द किधर है फिर भी 'शकील' इस दौर में प्यारे साहब-ए-फ़न है अहल-ए-हुनर है